रतलाम इतिहास

Ratlam History in Hindi- Ratlam Royal Family.
रतलाम जिला मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग में अद्भुद भौगोलिक स्थिति के साथ है इसके उत्तर और दक्षिण भाग छोड़ कर बाकि ३ तरफ राजस्थान राज्य की सीमाएं स्थित है..रतलाम भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त के मालवा क्षेत्र का एक जिला है। रतलाम शहर समुद्र सतह से १५७७ फीट कि ऊंचाई पर स्थित है। रतलाम के पहले राजा महाराजा रतन सिंह थे। यह नगर सेव, सोना, सट्टा ,मावा, साडी तथा समोसा कचौरी के लिये प्रसिद्ध है। महाराजा रतनसिंह और उनके पुत्र रामसिंह के नामों के संयोग से शहर का नाम रतनराम हुआ, जो बाद में अपभ्रंशों के रूप में बदलते हुए क्रमशः रतराम और फिर रतलाम के रूप में जाना जाने लगा।
रतलाम जिला
—  Ratlam District  —
राज्य मध्य प्रदेश्,भारत
प्रशासनिक प्रभाग उज्जैन
मुख्यालय रतलाम (434)
स्थापना 1652
क्षेत्रफल 4,861 किमी (1,877 वर्ग मील)
जनसंख्या 1,455,069 (2011)
जनसंख्या घनत्व 310 /किमी (800 /वर्ग मील)
साक्षरता 68.03%
लिंगानुपात 973
विकास 19.67%
लोकसभा क्षेत्र रतलाम
विधानसभा क्षेत्र रतलाम रुरल, रतलाम शहर, आलोट, सैलाना
तहसील रतलाम, जावरा, आलोट, सैलाना, बाजना, राउटी, पिपलोदा, ताल
ग्राम संख्या 1072
भाषा हिंदी
महापौर प्रह्लाद पटेल
सांसद गुमानसिंह डामोर
मुख्य आकर्षण **गडखंगे माता मंदिर, केदारेश्वर मंदिर, धोलावाड़ बांध, सागोद जैन मंदिर, कैक्टस गार्डन, अंदिकल्पेश्वर मंदिर, खरमौर पक्षी अभयारण्य, गंगा सागर, बिल्पकेश्वर मंदिर, कालिका माता मंदिर, पिपलोदा, झर, सैलाना पैलेस, गंगा सागर**
नदियां शिप्रा नदी
अक्षांश-देशांतर निर्देशांक23.33°N 75.03°E
 ऊँचाई (AMSL) 480 मीटर (1,570 फी॰)
समय मंडल:  आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
औसत वार्षिक वर्षण 800 मिमी
आधिकारिक जालस्थल
     रतलाम के जिले बनाये जाने का इतिहास भी कम रोचक नहीं है, जंब देश स्वतंत्र हुआ तो रतलाम भी एक रियासत था और इसके आसपास भी कई रियासते थी जैसे की रतलाम स्टेट , जाओरा, सैलाना, पिपलोदा, और कुछ देवास का भाग, कनिष्ठ और वरिष्ठ दोनों, और ग्वालियर का कुछ भाग, इस प्रकार से ७ रियासतों को मिलाकर रतलाम का निर्माण हुआ और इसे नवनिर्मित मध्यप्रदेश राज्य में जोड़ दिया गया।
      मध्य प्रदेश के एक खूबसूरत शहर रतलाम में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए सब कुछ है। अपने समृद्ध और जीवंत अतीत के साथ यह वास्तव में अपनी विरासत के सार को समेटता है। रतलाम को पहले 'रत्नपुरी' कहा जाता था, जिसका अर्थ है 'कीमती रत्नों का शहर'। यह मालवा क्षेत्र के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में स्थित है और कुल में मालवा संस्कृति के रंगों को दर्शाता है। आर्थिक गतिविधियों का एक उभरता हुआ केंद्र होने के नाते यह रोडवेज और रेलवे के माध्यम से देश के अन्य हिस्सों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। जगह के राजसी इतिहास के कारण, इसमें कई महल और स्मारक हैं। इसने भारतीय इतिहास के विभिन्न चरणों को देखा है। क्षेत्र के लोकगीत राजपुताना शौर्य की उत्साहजनक कहानी का वर्णन करते हैं।
रतलाम को इसका नाम कैसे मिला?
रतलाम जिले का इतिहास मध्यकालीन भारत के इतिहास से संबद्ध है, सबसे पहले इस भूभाग का नाम रतलाम क्यों पड़ा इस पर प्रकाश डालते है, मध्यप्रदेश में मालवा क्षेत्र का हिस्सा रतलाम, आजादी से पहले एक समय रियासत था। स्वतंत्रता के बाद, रियासत को भंग कर दिया गया था और अब यह देश में एक उभरता हुआ शहर है। इतिहासकार बताते हैं कि यह नाम शासक महाराजा रतन सिंह से लिया गया था, जिसे पहले "रत्नपुरी" कहा जाता था और इसका मतलब रत्नों का शहर था। जबकि एक अन्य राय से पता चलता है कि इस क्षेत्र पर पहले राजा व्याघ्रता के अधीन ४२० ईस्वी के दौरान वर्णिका कबीले का शासन था और वहाँ से "राम" नाम मंदसौर स्तंभ में अंकित किया गया था। शहर के नाम के बारे में सबसे स्वीकृत राय यह है कि यह नाम रत्नापुरी से आया था।
रतलाम का विकासवादी इतिहास

Ratlam Flag
रतलाम मुख्य रूप से मुगल सम्राट शाहजहाँ द्वारा रतन सिंह राठौर को उपहार में दिया गया था। शाहजहाँ के इशारे से जुड़ी एक महत्वपूर्ण घटना है। चूंकि मुग़ल सम्राट हाथी के झगड़े का शौकीन था, उसने एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया था। उन्होंने सभी प्रमुख राजपुताना कबीले को इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया।इस अवसर पर उपस्थित होने के लिए रतन सिंह को राठौड़ वंश से भी आमंत्रित किया गया था। मौके के दौरान, एक हाथी जंगली हो गया और शाहजहाँ की ओर बढ़ गया। कोई भी उसकी मदद करने के लिए आगे नहीं बढ़ा, लेकिन रतन सिंह बहुत बहादुर थे और उसकी मदद की। वह हाथी पर चढ़ गया और उसे अपने कतर (चाकू) से मार दिया। उन्होंने वीरतापूर्वक शाहजहाँ की जान बचाई। शाहजहाँ बहादुरी के इस कार्य से बहुत प्रभावित हुए और धन्यवाद के रूप में उन्हें रतलाम शहर का उपहार दिया।
प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास: रतलाम के आसपास के क्षेत्र का प्राचीन काल से ही ऐतिहासिक महत्व है। यह मालवा साम्राज्य का एक हिस्सा था, जिस पर मौर्य, गुप्त और परमार जैसे विभिन्न राजवंशों का शासन था। परमारों की राजधानी धार में थी, जो आज के रतलाम के पास स्थित है। इस क्षेत्र ने विभिन्न राज्यों और राजवंशों के बीच कई संघर्षों और सत्ता संघर्षों को देखा।
मुग़ल काल: 16वीं शताब्दी के दौरान, रतलाम मुगल साम्राज्य के नियंत्रण में आ गया। मुगल शासन के दौरान यह एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक और रणनीतिक केंद्र था। व्यापार और वाणिज्य के विकास के साथ, यह क्षेत्र मुगलों के अधीन समृद्ध हुआ।
मराठा शासन: 18वीं शताब्दी में, मध्य भारत में मराठा एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरे। रतलाम मराठा साम्राज्य के नियंत्रण में आ गया और मराठों द्वारा प्रशासित मालवा क्षेत्र का हिस्सा बन गया। इस अवधि के दौरान शहर ने आर्थिक विकास और सांस्कृतिक विकास देखा।
ब्रिटिश काल: ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने धीरे-धीरे मालवा क्षेत्र सहित भारत में अपने प्रभाव का विस्तार किया। 19वीं शताब्दी की शुरुआत में रतलाम ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया। यह शुरुआत में ब्रिटिश सेंट्रल इंडिया एजेंसी का एक हिस्सा था और बाद में सेंट्रल इंडिया एजेंसी का हिस्सा बन गया। ब्रिटिश शासन के दौरान, रतलाम ने महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के विकास को देखा, जिसमें रेलवे और सड़कों का निर्माण शामिल था। शहर व्यापार और वाणिज्य का एक प्रमुख केंद्र बन गया, विशेष रूप से इस क्षेत्र की कृषि उपज के लिए।
आजादी के बाद: 1947 में भारत को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता मिलने के बाद, रतलाम मध्य भारत के नवगठित राज्य का हिस्सा बन गया। बाद में, 1956 में, मध्य भारत को वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य बनाने के लिए अन्य क्षेत्रों के साथ मिला दिया गया और रतलाम एक जिला मुख्यालय बन गया।
      महाराजा रतन सिंह 1652 से 1658 तक पहले महाराजा थे। उनकी मृत्यु के बाद, महाराजा राम सिंह 1682 तक महाराजा बने। बाद में एक के बाद एक महाराजाओं द्वारा यह शासन किया गया। राठौड़ वंश के राजाओं की एक लंबी सूची है जिन्होंने शहर पर शासन किया है और उनमें से प्रत्येक ने कई तरीकों से योगदान दिया है। राठौड़ वंश के शासन के बाद, यह मध्य भारत में मालवा एजेंसी के हिस्से के रूप में ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया। राठौरों के इस लंबे शासन ने शहर को एक राजसी आकर्षण दिया है। रतलाम के आस-पास फैली कई सम्पदाएँ इस गौरवशाली काल से मौजूद हैं। कोई शहर की लहरों में वीरता और गर्व का असली स्वाद महसूस कर सकता है। ऐसे कई निर्माण हैं जो एक समृद्ध अतीत को छोड़ते हैं और शहर खुद को भारत के नक्शे पर एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में बढ़ाता है।
ब्रिटिश शासन के दौरान रतलाम
ब्रिटिश शासन के दौरान रतलाम भी एक रियासत थी। नया शहर जो मुख्य रूप से शहरी रतलाम है, की स्थापना कैप्टन बोरथविक ने वर्ष 1829 में की थी। तब इसे चौड़ी सड़कों और अच्छी तरह से निर्मित घरों से सुसज्जित किया गया था। अपने केंद्रीय भौगोलिक स्थान के कारण, यह ब्रिटिश शासन के दौरान मध्य भारत में एक वाणिज्यिक केंद्र था। अफीम, तंबाकू और नमक का व्यापार यहाँ से बड़े पैमाने पर किया जाता था। रतलाम रेलवे स्टेशन आज तक एक महत्वपूर्ण केंद्र है। स्वतंत्रता के बाद रतलाम शहर 1949 के वर्ष में फिर से संगठित हो गया। 4861 वर्ग किमी में फैला रतलाम को छह तहसीलों में बांटा गया है, जैसे आलोट, जावरा, पिपलोदा, रतलाम, सैलाना और बाजना।
रतलाम का राजसी इतिहास

ब्रिटिश भारत के शासन में, रतलाम मालवा क्षेत्र की रियासत थी। लंबे समय तक रतलाम राठौर वंश के शासन के अधीन था। सूर्यवंश राठौरों ने रियासत पर शासन किया और वे मुख्यतः राजस्थान से थे। महाराजा रतन सिंह इस क्षेत्र के पहले शासक थे और उनकी 12 पत्नियाँ थीं। उनकी 12 पत्नियों में से एक महारानी, ​​सुखरोपोपदे कंवर शेखावत ने 16 वीं शताब्दी में सती होने का फैसला किया। राठौड़ वंश के वंशज महाराजा नटवर सिंह अभी भी जीवित हैं और राजस्थान में अपने परिवार के साथ रह रहे हैं। स्वतंत्रता के बाद रियासत को भंग कर दिया गया और देश का एक अभिन्न अंग बन गया।
रतलाम में पुरातत्व और भक्ति स्थल

रतलाम शहर में और उसके आसपास भक्ति स्थानों के ढेर सारे हैं। इन सभी स्थानों पर एक ऐतिहासिक अतीत और लोककथाएँ हैं। कालकामाता मंदिर, महालक्ष्मी टैंपल, बारबड हनुमान मंदिर और इस तरह के धार्मिक स्थल शहर में फैले हुए हैं। ये पुरातत्व स्थल समृद्ध शहर के गौरवशाली अतीत की झलक देते हैं। रतलाम शहर के अधिकांश पुराने स्मारक 10 वीं -11 वीं शताब्दी ईस्वी के हैं। मुगलों के अलावा कुछ हिंदू शासक भी इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति का संकेत देते हैं। परमार राजवंश की भी इस क्षेत्र में उपस्थिति थी। रतलाम शहर के पास झार क्षेत्र में एक प्राचीन शिव मंदिर की पुरानी और खंडित मूर्तियां बिखरी हुई देखी जा सकती हैं। एक अन्य प्राचीन इस्लामिक धर्मस्थल हुसैन टेकरी की स्थापना 19 वीं शताब्दी में नवाब मोहम्मद इफ्तिखार अली खान बहादुर ने की थी। यह मंदिर रतलाम के बाहरी इलाके में मौजूद था। नवाब को हुसैन टेकरी के कब्रिस्तान में दफनाया गया था। मोहर्रम के दौरान हर साल, इस्लामी त्यौहारों के मौसम में कई मुस्लिम तीर्थयात्री दुनिया भर से मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं।
  आज, रतलाम शहर अपनी व्यावसायिक और औद्योगिक गतिविधि के साथ मध्य प्रदेश में सबसे तेजी से बढ़ते शहरों में से एक है। यह क्षेत्र आर्थिक रूप से राज्य के राजस्व में वृद्धि का समर्थन कर रहा है। ऐतिहासिक स्थान, भक्ति स्मारक, पार्क और उद्यान रतलाम को एक आदर्श पर्यटन स्थल बनाते हैं।
      मुग़ल बादशाह शाहजहां ने रतलाम जागीर को रतन सिह को एक हाथी के खेल में, उनकी बहादुरी के उपलक्ष में प्रदान की थी। उसके बाद, जब शहजादा शुजा और औरंगजेब के मध्य उत्तराधिकारी की जों जंग शरू हुई थी, उसमे रतलाम के राजा रतन सिंह ने बादशाह शाहजहां का साथ दिया था। औरंगजेब के सत्ता पर असिन होने के बाद, जब अपने सभी विरोधियो को जागीर और सत्ता से बेदखल किया, उस समय, रतलाम के राजा रतन सिंह को भी हटा दिया था और उन्हें अपना अंतिम समय मंदसौर जिले के सीतामऊ में बिताना पड़ा था और उनकी मृत्यु भी सीतामऊ में भी हुई, जहाँ पर आज भी उनकी समाधी की छतरिया बनी हुई हैं।
      औरंगजेब द्वारा बाद में, रतलाम के एक सय्यद परिवार, जों की शाहजहां द्वारा रतलाम के क़ाज़ी और सरवनी जागीर के जागीरदार नियुक्त किये गए थे, द्वारा मध्यस्ता करने के बाद, रतन सिंह के बेटे को उत्तराधिकारी बना दिया गया। इसके आलावा रतलाम जिले का ग्राम सिमलावदा अपने ग्रामीण विकास के लिये पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध हे। यहाँ के ग्रामीणों द्वारा जनभागीदारी से गांव में ही कई विकास कार्य किये गए हे। रतलाम से 30 किलोमीटर दूर बदनावर इंदौर रोड पर कालका माताजी का अति प्राचीन पांडवकालीन पहाड़ी पर स्थित मन्दिर हे। यहाँ पर दूर दूर से लोग अपनी मनोकामना पूरी करने और खासकर सन्तान प्राप्ति के लिए यहाँ पर मान लेते हे.
     रतलाम जिला मध्य प्रदेश के जिलों में एक जिला है, रतलाम जिला, उज्जैन मंडल के अंतर्गत आता है और इसका मुख्यालय रतलाम में है, जिले में 5 उपमंडल है, 6 ब्लॉक है, 8 तहसील है और ४ विधान सभा क्षेत्र जो की रतलाम लोकसभा के अंतर्गत आती है, 1072 ग्राम है और 418 ग्राम पंचायते भी है । रतलाम जिले का क्षेत्रफल 4861 वर्ग किलोमीटर है, और २०११ की जनगणना के अनुसार रतलाम की जनसँख्या 2365106 और जनसँख्या घनत्व 210/km2 व्यक्ति [प्रति वर्ग किलोमीटर] है, रतलाम की साक्षरता 68.03% है, महिला पुरुष अनुपात यहाँ पर 973 महिलाये प्रति १००० पुरुषो पर है, जिले की जनसँख्या विकासदर २००१ से २०११ के बीच 19.67 % रहा है।
      रतलाम जिला भारत के राज्यो में एकदम मध्य में स्थित मध्य प्रदेश राज्य में है, रतलाम जिला मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग में अद्भुद भौगोलिक स्थिति के साथ है इसके उत्तर और दक्षिण भाग छोड़ कर बाकि ३ तरफ राजस्थान राज्य की सीमाएं स्थित है रतलाम 23°33′ उत्तर 75°03′ पूर्व के बीच स्थित है, रतलाम की समुद्रतल से ऊंचाई 480 मीटर है, रतलाम भोपाल से 294 किलोमीटर पश्चिम की तरफ मध्यप्रदेश के शासकीय राजमार्ग 18 पर है और भारत की राजधानी दिल्ली से 783 किलोमीटर दक्षिण की तरफ राष्ट्रिय राजमार्ग 48 पर है ।
रतलाम जिले के पडोसी जिले

रतलाम के उत्तर में मंदसौर जिला है, उत्तर पूर्व में राजस्थान के जिले है जो झालावाड़ जिला है और मध्य प्रदेश का शाजापुर जिला है, पूर्व में उज्जैन जिला है, दक्षिण पूर्व में धार जिला है, दक्षिण में झाबुआ जिला है, पश्चिम और पश्चिमोत्तर में फिर से राजस्थान के जिले है जो की बांसवाड़ा जिला और प्रतापगढ़ जिला है ।
रतलाम जिले में तहसील ब्लॉक और उपमंडल

रतलाम जिले में प्रशासनिक विभाजन उपमंडल, ब्लॉक और तहसील में किया गया है, इनके मुख्य अधिकारी SDM BDO और तहसीलदार होते है, रतलाम जिले में 5 उपमंडल है आलोट, जावरा, रतलाम ग्रामीण, रतलाम, सैलाना, जिले में 8 तहसीलें है आलोट, जावरा, पिपलोदा, रतलाम, सैलाना, बाजना, रावटी और ताल तथा 6 ब्लॉक है आलोट, जावरा, पिपलोदा, रतलाम, सैलाना, बाजना
रतलाम जिले में विधान सभा और लोकसभा की सीटें

रतलाम जिले में 5 विधान सभा क्षेत्र है, आलोट, जावरा, रतलाम ग्रामीण, रतलाम, सैलाना और ये रतलाम लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा हैं।
       राज्य की राजधानी मध्य प्रदेश के आधुनिक रतलाम जिले में रतलाम शहर था। रतलाम राज्य मूल रूप से एक समृद्ध राज्य था, इसके परगना (जिलों) में धार, बदनावर, दागपारावा, आलोट, तितरोड, कोटड़ी, गदगुचा, आगर, नाहरगढ़, कानार, भीलारा और रामगढ़िया शामिल थे, जो 17 वीं शताब्दी में 3,3,00,000 का राजस्व अर्जित करते थे। । मुगल उत्तराधिकार युद्ध के दौरान रतलाम के महाराजा रतन सिंह ने दारा शुकोह का समर्थन किया। हालाँकि शुकोह युद्ध हार गया और रतन सिंह भी युद्ध में मारा गया। नए बादशाह औरंगजेब ने रतलाम पर कब्जा कर लिया और राज्य को काफी हद तक कम कर दिया। राज्य ने ग्वालियर के सिंधिया और इंदौर के होल्करों के लिए भूमि खो दी। ब्रिटिश शासन के दौरान राज्य का क्षेत्रफल 1,795 किमी था और अनुमानित राजस्व 10,00,000 रुपये था।
      रतलाम के शासक मूल रूप से राजकुमारों और मारवाड़ के जागीरदार (रईस) थे। उन्हें मारवाड़ के राजा उदय सिंह द्वारा जालौर की जागीर दी। मुगल बादशाहों ने फारसियों और अफगानों के खिलाफ दिखाए गए बहादुरी के लिए उन्हें अजमेर के पास कई गाँव दिए। बाद में शाहजहाँ ने रतनसिंह को रतलाम का महाराजा बना दिया, जो खोरासान में फारसियों और कंधार में उज़बेकों के खिलाफ दिखाया गया था। रतन सिंह ने भी सम्राटों के पसंदीदा हाथी को शांत करके अपनी बहादुरी दिखाई थी। शाही हाथी ने आगरा में कई नागरिकों को रौंद दिया था और कोई भी इसके क्रोध को रोक नहीं पाया था, लेकिन रतन सिंह ने हाथी पर चढ़कर उनकी  गर्दन को तलवार से काटकर उन्हें नियंत्रित किया। 
    शाहजहाँ रतन सिंह द्वारा दिखाए गए नायकों से इतना प्रभावित था, कि उसने उसे धार, बदनावर, दागपारावा, आलोट, तितरोड, कोटि, गदगुचा, आगर, नाहरगढ़, कनार, भीलारा और रामगढ़िया के परगने उपहार स्वरुप दे दिए दिए। इस प्रकार महाराजा रतन सिंह ने 1652 में रतलाम राज्य की स्थापना की। रतन सिंह को शाहजहाँ द्वारा महाराजाधिराज, श्री हुजूर और महाराजा बहादुर की उपाधि दी गई। उन्हें आगे चलकर चौर (याक की पूंछ), मोर्चल (मोर की खाल), सूरज मुखी (सूर्य और चंद्रमा का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रशंसक) और माही-मरातीब (मछली का प्रतीक चिन्ह) के प्रतीक चिन्ह से सजाया गया।
रतन सिंह शाहजहाँ के गद्दार पुत्र औरंगजेब से युद्ध में मारे गए, , धर्मपुर में औरंगजेब, द्वारा  उनकी पत्नी महारानी सुखरूपदे कंवर शेखावत जी साहिबा ने १६५8 में सती कर लिया। रतन सिंह के पुत्रों ने मालवा क्षेत्र में विभिन्न क्षेत्रों में शासन किया। रतलाम, सैलाना और सीतामऊ के राजा सभी रतन सिंह के वंशज थे। ब्रिटिश शासन के दौरान, राज्य में 1795 किमी का क्षेत्र था, जो सैलाना की रियासत के क्षेत्र के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ था। 1901 में, राज्य की जनसंख्या 83,773 थी; रतलाम शहर की आबादी 36,321 थी। राज्य को अनुमानित रूप से राजस्व का लाभ मिला 10,00,000। यह शहर राजपुताना-मालवा रेलवे पर एक जंक्शन था, और विशेष रूप से अफीम का एक महत्वपूर्ण व्यापार केंद्र था।
       रतलाम को शुरू में ग्वालियर साम्राज्य में रखा गया , लेकिन 5 जनवरी 1819 को यह ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर दिया गया , जिसके बाद सिंधिया ने किसी भी सेना को देश में भेजने या आंतरिक प्रशासन के साथ हस्तक्षेप नहीं करने का आदेश दिया । राज्य के अंतिम शासक ने 15 जून 1948 को भारतीय संघ में प्रवेश के पर हस्ताक्षर किए।
वर्तमान में रतलाम:
आज, रतलाम 20 लाख (2,022,546) से अधिक लोगों की आबादी वाला एक हलचल भरा शहर है। यह अपने संपन्न कपड़ा और कपास उद्योगों के लिए जाना जाता है। रतलाम अपने गहनों के लिए भी प्रसिद्ध है और सोने और चांदी के आभूषणों का एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र है। शहर में कई शैक्षणिक संस्थान, अस्पताल और परिवहन सुविधाएं हैं। यह मध्य प्रदेश में एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय केंद्र के रूप में विकसित हुआ है। हाल के दिनों में, रतलाम में तेजी से शहरीकरण और औद्योगिक विकास हुआ है। यह कपड़ा और रसायन से लेकर इंजीनियरिंग और विनिर्माण तक के उद्योगों के साथ मध्य प्रदेश में एक महत्वपूर्ण औद्योगिक और वाणिज्यिक केंद्र बन गया है। रतलाम ने विभिन्न मंदिरों, किलों और ऐतिहासिक स्थलों की उपस्थिति के साथ अपनी सांस्कृतिक विरासत को भी बरकरार रखा है। आधुनिक विकास के साथ अपने समृद्ध इतिहास को सम्मिश्रित करते हुए शहर का विकास और विकास जारी है। अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के अलावा, रतलाम अपने अनूठे व्यंजनों के लिए जाना जाता है, जिसमें लोकप्रिय रतलामी सेव, एक मसालेदार नाश्ता शामिल है जो पूरे भारत में प्रसिद्ध है। कुल मिलाकर, रतलाम का इतिहास प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक प्रभावों का एक आकर्षक मिश्रण है, जो मध्य भारत के एक छोटे से गाँव से एक महत्वपूर्ण शहर के रूप में इसके विकास को दर्शाता है।
(Ratlam Royal Family) - महाराजा रतलाम उदय सिंह ने अपने चौथे बेटे (या सत्रहवें) को कुंवर दलपत सिंह, राजस्थान के अजमेर जिले के पिसांगन का परगना प्रदान किया। उनके महान पौत्र, राजा रतन सिंह ने 1652 में रतलाम की स्थापना की थी।
Date /Year महाराजा रतलाम
1652/1658महाराजा रतन सिंह
प्रथम महाराजा 
1658/1682महाराजा राम सिंह
दूसरे महाराजा
1682/1684महाराजा शिव सिंह
तीसरे महाराजा
1684महाराजा केशव दा
4 वें महाराजा
1684/1709महाराजा चेतसाल5 वें महाराजा
1709/1716केएसएच आरआई सिंह6 वें महाराजा
1717/1743महाराजा मान सिंह
7 वें महाराजा
1743/1773महाराजा  प्रथ्वी सिंह8 वें महाराजा
1773/1800महाराजा पदम सिंह 9 वें महाराजा
1800/1824महाराजा प्रभात सिंह10 वें महाराजा
1824/1857महाराजा बलवंत सिंह11 वें महाराजा
1857/1864महाराजा भैरोन सिंहजी12 वें महाराजा
1864/1893महाराजा रणजीत सिंहजी
13 वें महाराजा
1893/1947महाराजा सज्जन सिंह बहादुर
14 वें महाराजा
1947/1991महाराजा लोकेन्द्र सिंह बहादुर जी
15 वें महाराजा
1991/2011महाराजा रणबीर सिंह  बहादुर जी
16 वें महाराजा
Date of Reignस्वतंत्र-भारत प्रथम महाराजा
1 Jan 1893 – 3 Feb 1947महाराजा सज्जन सिंह बहादुर
3 Feb 1947 – 15 Aug 1947महाराजा लोकेन्द्र सिंह बहादुर जी (b. 1927 – d. 1991)
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